बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

आज कल मैं जब लोगो से बात करता हू तो अक्सर यह महसूस होता है की मैं अपने देश के लोगो से ही बात कर रहा हू या किसी और देश के निवासियों से। जिसको देखो उसको ही पैसे के सपने आ रहे है , लोग अक्सर यह कहते दिख जाते है की देश जाए भाड़ में हमे क्या लेना देना , पूरे देश का ठेका हमने ही थोडी उठा रखा है । जिसको देखो भ्रस्त्ताचार और बेमानी कर रहा है तो हमसे इमानदारी करने की उम्मीद क्यो लगाई जा रही है ।मैं मानता हू की पैसे के सपने देखना बुरा नही है ,बुरा है पैसे की बर्बादी करना ,पैसे और निजी जिंदगी मैं इतना डूब जाना की हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से ही परे हट जाए । अब सवाल फिर उठ जाता है कि हमारी सामाजिक जिम्मेदारिया कौन कौन सी है और इन जिम्मेदारियों को हमे क्यो निभाना चाहिए ।